MA Semester-1 Sociology paper-I - CLASSICAL SOCIOLOGICAL TRADITION - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2681
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

प्रश्न- 'प्रोटेस्टेण्ट आचार और पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी मैक्स वेबर के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

प्रोटेस्टेण्ट आचार और पूँजीवाद की आत्मा सम्बन्धी मैक्सवेबर के विचार

मैक्स वेबर की सबसे महत्वपूर्ण और सर्वाधिक विदित देन " धर्म का समाजशास्त्र " है। धार्मिक कारक को एक परिवर्तनीय तत्व मानकर श्री वेबर 'धर्म के आर्थिक आचारों को अपने अध्ययन का आधार मानते हैं और इसी आधार पर धर्म के आर्थिक जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों को ढूँढ़ने का प्रयत्न करते हैं। 'धर्म के आर्थिक आचारों के अन्तर्गत श्री वेबर धर्म से सम्बन्धित विभिन्न आध्यात्मिक सिद्धान्तों और विचारों को नहीं, वरन् आचरण के उन समस्त व्यावहारिक तरीकों को सम्मिलित करते हैं जो कि एक धर्म अपने सदस्यों के लिये निश्चित करता है। इनके अनुसार, धार्मिक आचारों और धार्मिक विश्वासों में एक सम्बन्ध है। साथ ही, आचरण के प्रभावपूर्ण स्वरूपों के निर्माण में धार्मिक कारक के अतिरिक्त अन्य अनेक कारकों का योग होता है, फिर उनमें धर्म एक महत्वपूर्ण कारक है। इसे प्रमाणित करने के लिये श्री मैक्स वेबर ने विश्व के छः महान धर्मों को चुन लिया है। वे धर्म हैं कन्फ्यूशियन, हिन्दू, बौद्ध, ईसाई, इस्लाम तथा यहूदी धर्म। श्री वेबर ने इनमें से प्रत्येक धर्म के आर्थिक आचारों का विश्लेषण किया और फिर उन आचारों के, उस धर्म-विशेष को मानने वाले लोगों के आर्थिक तथा सामाजिक संगठन पर पड़ने वाले प्रभावों को सिद्ध किया। सर्वाधिक प्रख्यात रचना “दी प्रोटेस्टेण्ट इथिक एण्ड दि स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म" में इन्होंने प्रोटेस्टेण्ट धर्म और पूँजीवाद के सम्बन्ध को विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया। इनके मतानुसार प्रोटेस्टेण्ट धर्म में कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जो कि उन आर्थिक नियमों की व्यवस्था को उत्पन्न करने में सहायक हुई जिसे कि हम पूँजीवाद कहते हैं, और यह प्रोटेस्टेण्ट सुधार ही था जिसने एक पूँजीवादी वर्ग-व्यवस्था के विकास में प्रत्यक्ष प्रेरणा प्रदान की। परन्तु इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं कि प्रोटेस्टेण्ट धर्म एकमात्र कारक है। श्री वेबर ने सदा इस बात पर बल दिया कि आधुनिक पूँजीवाद के विकास के लिये अनेक परस्पर स्वतन्त्र अवस्थाएँ आवश्यक थीं। फिर भी इन्होंने उतनी ही निश्चितता और दृढ़ता से यह भी कहा कि प्रोटेस्टेण्ट आचार एक आवश्यक कारक था और इसके बिना पूँजीवाद का विकास सर्वथा भिन्न होता।

प्रोटेस्टेण्ट धर्म और पूँजीवाद के उक्त सम्बन्ध को प्रमाणित करने के लिये श्री वेबर ने इन दोनों के "आदर्श प्रारूपों को चुना है। आधुनिक पूँजीवाद के विशिष्ट लक्षण इस प्रकार हैं- इस अर्थ व्यवस्था के अन्तर्गत उद्योग, व्यापार और वाणिज्य बड़े पैमाने पर बिल्कुल वैज्ञानिक आधारों पर विवेकपूर्ण ढंग से संगठित तथा संचालित होता है, निजी सम्पत्ति सम्पूर्ण व्यवस्था की सर्वप्रमुख अंग होती है, उत्पादन का कार्य बड़ी-बड़ी मिल तथा फैक्ट्री में अधिक लोगों की सहायता से मशीनों द्वारा होता है, और इस प्रकार से उत्पादित वस्तुओं की संगठित विक्रय व्यवस्था की जाती है, अधिकतम कार्यकुशलता के लिये श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण पर अधिक बल दिया जाता है, और सर्वप्रमुख उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है। पूँजीवादी व्यवस्था में कार्य ही जीवन तथा कुशलता ही धन है। प्रत्येक व्यक्ति को अधिकतम उत्साह तथा अधिकतम कुशलता के साथ कार्य करना पड़ता है। इस व्यवस्था में जोखिम अधिक होता है, इस कारण इसमें व्यक्ति में आत्मविश्वास, कर्त्तव्यपरायणता तथा अपने व्यवसाय के प्रति पूरी निष्ठा होनी चाहिए। इसे ही “व्यावसायिक आचार" कहा जाता है। जो व्यक्ति अपने कार्य या व्यवसाय में कुशल है, वे धन और मान दोनों को ही पाते हैं और जिनमें कार्य कुशलता कम होती है, वे धन और मान दोनों से वंचित रहते हैं। पूँजीवादी व्यवस्था में जो कुछ भी अकुशल और पुराना है, उसका पतन अनिवार्य है। संक्षेप में यही पूँजीवाद का प्रमुख तत्व है।

परन्तु यहाँ प्रश्न यह है कि वह कौन-सी शक्ति है जो कि इस प्रकार की आर्थिक व्यवस्था को सम्भव बनाती है तथा उसे स्थिर रखती है? यह शक्ति, श्री वेबर के अनुसार प्रोटेस्टेण्ट धर्म का आर्थिक आचार है। पूँजीवादी व्यवस्था को बनाये रखने के लिए व्यक्ति के द्वारा जिन आचरणों को किया जाना आवश्यक है उनके सम्बन्ध में लोगों को अनेक उपदेश प्रोटेस्टेण्ट धर्म से प्रभावित सामाजिक नेताओं से प्राप्त होते हैं।
उदाहरण - श्री बेंजामिन फ्रेंकलिन ने, जोकि आधुनिक पूँजीवाद के मूल सिद्धान्तों के प्रारम्भिक प्रतिपादक माने जाते हैं, अपनी आत्मकथा में अपने अनेक उपदेश उन लोगों को दिये हैं जोकि व्यवसाय में सफल होना या धनी होना चाहते हैं। ये उपदेश प्रोटेस्टेण्ट आचारों द्वारा प्रभावित और बहुत कुछ उनके अनुरूप हैं। इन उपदेशों में कुछ उपदेश इस प्रकार हैं।
.
(1) " समय ही धन है"।
(2) "धन से धन कमाया जाता है"।
(3) "एक पैसा बचाना एक पैसा कमाना है"
(4) "ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है"।
(5) "जल्दी सोना और जल्दी उठना व्यक्ति को स्वस्थ, धनी और बुद्धिमान बनाता है"।

यदि हम इन समस्त उपदेशों के पीछे छिपे मनोभावों पर ध्यान दें हम स्पष्टतया यह पाएँगे कि ये सभी निर्देश एक विशेष बात पर विशेष बल देते हैं और वह यह है कि "कार्य करना ही सबसे बड़ा गुण है" और इस कारण हमें कम-से-कम इतना बुद्धिमान होना चाहिए कि हम कठोर परिश्रम करें और धन को कमाएँ और बचाएँ ताकि हम स्वस्थ और धनी हो सकें। इस प्रकार के मूल सिद्धान्तों या मनोभावों के बिना आधुनिक पूँजीवाद कदापि सम्भव न होता। यह मूल सिद्धान्त, जैसाकि निम्नलिखित विवेचना से स्पष्ट होगा, प्रोटेस्टेण्ट धर्म से लोगों को प्राप्त होता है। पूँजीवाद के विकास में प्रोटेस्टेण्ट धर्म के आचारों का प्रभाव निम्नवत् है -

(1) “काम करना ही सबसे बड़ा गुण है", यह एक प्रोटेस्टेण्ट आचार है। कैथोलिक आचार में इस प्रकार का कोई विचार नहीं पाया जाता है। कैथोलिक धर्म में प्रचलित एक गाथा से यह बात स्पष्ट तथा प्रमाणित होती है कि आदम तथा ईव ने स्वर्ग में अच्छे और बुरे ज्ञान के वृक्ष के फलों को खा लिया था, इस अपराध के दण्डस्वरूप ईश्वर ने उन दोनों का स्वर्ग से बहिष्कार कर दिया और उन्हें यह दण्ड दिया कि अब से ईव और उसकी कन्याएँ कष्ट से बच्चे को जन्म देंगी और आदम और उसके पुत्रों को एड़ी-चोटी का पसीना एक करके रोटी कमानी होगी। अतः स्पष्ट है कि कैथोलिक आचार में श्रम एक गुण नहीं, बल्कि एक दण्ड है। इसके विपरीत प्रोटेस्टेण्ट आचार में कार्य ऐसी क्रिया या आचरण है जिसे कि करना उचित है, और स्वयं कार्य के लिये ही कार्य करना चाहिए। "कर्म ही पूजा है" या परिश्रम से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है", ये आचार प्रोटेस्टेण्ट धर्म के ही हैं और इनकी बहुत बड़ी देन पूँजीवाद के विकास में है।

(2) इसकी दूसरी देन "व्यावसायिक आचार" है, जोकि पूँजीवाद के विकास में सहायक है। इसका सम्बन्ध उस विश्वास से है जिसे कैलविनवाद कहा जाता है, और जिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा मृत्यु के पश्चात् या तो स्वर्ग या नरक में चली जाती है और व्यक्ति के जीवन काल में कोई भी कार्य उसके भाग्य को बदल नहीं सकता। परन्तु उसके जीवन काल में कुछ इस प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं जोकि उसे पहले से ही यह संकेत कर सकते हैं कि उसकी आत्मा स्वर्ग को जाएगी। इस विश्वास के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति पर एक नैतिक दबाव इस रूप में डाला जाता है कि वह अपने पेशे व व्यवसाय में कठोर परिश्रम करे और उसके प्रति पूर्ण निष्ठा बरते ताकि उसे अधिकाधिक सफलता प्राप्त हो सके।

(3) पूँजीवाद को प्रोटेस्टेण्ट धर्म की तीसरी देन यह है कि इस धर्म के अन्तर्गत ऋण पर सूद वसूल करने की मान्यता या स्वीकृति है।

(4) प्रोटेस्टेण्ट धर्म की पूँजीवाद के विकास में चौथी देन यह है कि इस धर्म ने शराबखोरी को बुरा बताया और ईमानदारी को ऊँचा पद प्रदान किया। इस धार्मिक आचार के परिणामस्वरूप लोगों में शराब पीकर आलसीपन करने की प्रवृत्ति घटती गई और उनकी कुशलता बढ़ी।

(5) प्रोटेस्टेण्ट आचार का पूँजीवाद के विकास में अन्तिम प्रभाव इस रूप में है कि वह कैथोलिक आचार की भाँति अधिक छुट्टी के पक्ष में नहीं है। प्रोटेस्टेण्टवादियों के लिये कर्म ही आराधना है। पूँजीवादी व्यवस्था की सफलता के लिये भी अधिक कार्य और कम छुट्टियाँ आवश्यक हैं।

अतः स्पष्ट है कि प्रोटेस्टेण्ट धर्म और उसका आर्थिक आचार वह प्रभावशाली शक्ति है, जो कि पूँजीवाद के विकास में प्रमुख कारक रही है, परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि प्रोटेस्टेण्ट आचार पूँजीवाद के विकास में एकमात्र कारक है। अन्य अनेक कारकों का भी योग इस दिशा में अवश्य रहा होगा। इस अर्थ में, मैक्स वेबर को एक कारकवादी नहीं बल्कि बहु-कारकवादी माना जा सकता है।

वेबर ने पूँजीवाद तथा प्रोटेस्टेण्ट आचारों के बीच सम्बन्ध को स्पष्ट करने के लिये अनेक ऐतिहासिक प्रमाणों को प्रस्तुत किया है। इन्होंने यह दर्शाया है कि पूँजीवाद का सर्वोत्तम विकास इंग्लैण्ड, अमेरिका, हालैण्ड आदि देशों में हुआ है जहाँ कि लोग प्रोटेस्टेण्ट धर्म के अनुयायी हैं। इसके विपरीत इटली, स्पेन आदि देशों के लोग कैथोलिक धर्म के अनुयायी होने के कारण पूँजीवाद को अधिक विकसित नहीं कर पाये। इसी तरह वेबर ने कन्फ्यूशियस धर्म, बौद्ध-धर्म, हिन्दू-धर्म, इस्लाम और यहूदी धर्म का विश्लेषण किया और यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि इन सभी धर्मों के आर्थिक आचारों के अनुरूप ही समाज का आर्थिक तथा सामाजिक संगठन निश्चित हुआ है। उदाहरणार्थ हिन्दू धर्म। मैक्स वेबर ने हिन्दू धर्म को जिस रूप में देखा और प्रस्तुत किया है उसके अनुसार मूल अर्थों में हिन्दू धर्म में मुक्ति का अर्थ केवल 'कर्म के चक्र से मुक्ति' है, किन्तु इस लक्ष्य को दूसरे लोगों से अधिक सांसारिक सफलता पाकर प्राप्त नहीं किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, यदि आप दूसरे व्यक्तियों से कहीं अधिक सांसारिक सफलताएँ प्राप्त करते हैं, तो वे सफलताएँ आपके मुक्ति प्राप्ति में सहायक कदापि सिद्ध न होंगी। मुक्ति तो समस्त सांसारिक मायाओं, इच्छाओं और अभिरुचियों से अपने को पूर्णतया अलग या दूर रखकर और ब्रह्म से साक्षात्कार करके उसमें अपने को विलीन कर देने पर ही प्राप्त की जा सकती हैं।

संक्षेप में, हिन्दू धर्म ने इसके मानने वालों को भौतिक उन्नति करने में, या सांसारिक सफलताएँ अथवा लौकिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में किसी प्रत्यक्ष अभिरुचि की प्रेरणा नहीं दी। इसी कारण हिन्दू धर्म को मानने वाले भौतिक उन्नति में नहीं, आध्यात्मिक उन्नति में संसार में सबसे आगे रहे। साथ ही इस धर्म का हिन्दू सामाजिक संगठन के स्वरूप को निश्चित करने में भी पर्याप्त योग रहा। आध्यात्मिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये यह आवश्यक था कि धार्मिक नियमों को कठोरता से लागू किया जाए। इसी कारण सामाजिक व्यवस्था और कार्य करने की रीति में हमें इतनी कट्टरता दिखाई पड़ती. है। धर्म के इस कट्टरपन की एक सामाजिक अभिव्यक्ति हिन्दू जाति प्रथा है। जाति प्रथा को स्थिर रखने में 'कर्म के सिद्धान्त' का अत्यधिक योग रहा है। जाति प्रथा में परम्परागत कर्त्तव्यों, विशेषकर धार्मिक संस्कारों या कर्त्तव्यों को सच्चाई से पूरा करना ही अच्छे व्यवहार का एकमात्र मापदण्ड है। सबको यह विश्वास दिलाया जाता है कि जाति प्रथा के अन्तर्गत प्रत्येक जाति को जो कर्म या कार्य सौंपा गया है, उनके प्रति निष्ठा रखते हुए अपने कर्मों तथा कर्त्तव्यों को करते रहने से ही व्यक्ति एक उच्चतर जाति में पुनर्जन्म लेकर अपनी आधारभूत धार्मिक स्थिति में सुधार की कोई आशा कर सकता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हिन्दू धर्म ने इस समाज के आर्थिक तथा सामाजिक संगठन को निश्चित करने में पर्याप्त योग दिया है।

उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि मैक्स वेबर के धर्म के समाजशास्त्र की मूल विशेषता धर्म तथा आर्थिक व सामाजिक संगठन के बीच सम्बन्ध का सिद्धान्त है। मैक्स वेबर ने कहा है कि धर्म के समाजशास्त्र का मूल तत्व यह है कि विचार नहीं, बल्कि धार्मिक स्वार्थ कर्म को प्रेरित करते हैं और ये धर्म आर्थिक व सामाजिक संगठन को निश्चित करते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की विवेचना कीजिये।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  4. प्रश्न- समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिये।
  5. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिये।
  6. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिये।
  7. प्रश्न- सामाजिक विचारधारा की प्रकृति व उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- ज्ञान का समाजशास्त्र क्या है? दुर्खीम के अनुसार इसकी विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- 'दुर्खीम बौद्धिक पक्ष' की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  11. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइये।
  12. प्रश्न- विसंगति की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुर्खीम की देन की तुलना कीजिये।
  14. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  15. प्रश्न- 'दुर्खीम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया' व्याख्या कीजिये।
  16. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट करें।
  17. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- दुर्खीम के समाजशास्त्रीय प्रत्यक्षवाद के नियम बताइए।
  19. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या-सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिये।
  20. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त के क्या प्रकार हैं?
  21. प्रश्न- आत्महत्या का परिचय, अर्थ, परिभाषा तथा कारण बताइये।
  22. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त की विवेचना करते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त को परिभाषित कीजिये।
  29. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार 'विसंगत आत्महत्या' क्या है?
  30. प्रश्न- आत्महत्या का समाज के साथ व्यक्ति के एकीकरण की समस्या।
  31. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विवेचना कीजिए।
  32. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  33. प्रश्न- सामाजिक तथ्य की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
  34. प्रश्न- बाह्यता (Exteriority) एवं बाध्यता (Constraint) क्या है? वर्णन कीजिये।
  35. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य की व्याख्या किस प्रकार की है?
  36. प्रश्न- समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम' पुस्तक में दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य को कैसे परिभाषित किया है?
  37. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्य की विशेषताओं का मूल्यांकन कीजिए।
  38. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों के लिये कौन-कौन से नियमों का उल्लेख किया है?
  39. प्रश्न- दुर्खीम ने सामान्य और व्याधिकीय तथ्यों में किस आधार पर अंतर किया है?
  40. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा निर्णीत “अपराध एक सामान्य सामाजिक तथ्य है" को रॉबर्ट बीरस्टीड मानने को तैयार नहीं है। स्पष्ट करें।
  41. प्रश्न- अपराध सामूहिक भावनाओं पर आघात है। स्पष्ट कीजिये।
  42. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार दण्ड क्या है?
  43. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म और जादू में क्या अंतर किये हैं?
  44. प्रश्न- टोटमवाद से दुर्खीम का क्या अर्थ है?
  45. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म के किन-किन प्रकार्यों का उल्लेख किया है?
  46. प्रश्न- दुर्खीम का धर्म का क्या सिद्धांत है?
  47. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्यों की अवधारणा पर प्रकाश डालिये।
  48. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म के सामाजिक सिद्धान्तों को विश्लेषित कीजिए।
  49. प्रश्न- दुर्खीम ने अपने पूर्ववर्तियों की धर्म की अवधारणों की आलोचना किस प्रकार की है।
  50. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म की अवधारणा को विशेषताओं सहित स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- दुर्खीम की धर्म की अवधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
  52. प्रश्न- धर्म के समाजशास्त्र के क्षेत्र में दुर्खीम और वेबर के योगदान की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- पवित्र और अपवित्र, सर्वोच्च देवता के रूप में समाज धार्मिक अनुष्ठान और उनके प्रकार बताइये।
  54. प्रश्न- टोटमवाद क्या है? व्याख्या कीजिये।
  55. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  57. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  58. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- मार्क्स की वैचारिक या वैचारिकी के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
  60. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
  61. प्रश्न- मार्क्स का 'आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त' बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता समझाइए।
  62. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  64. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  65. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिये।
  66. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  67. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  68. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  69. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही है?
  70. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  71. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के "द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी सिद्धान्त" का मूल्याकंन कीजिए।
  72. प्रश्न- कार्ल मार्क्स की वर्गविहीन समाज की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
  73. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- पूँजीवादी व्यवस्था तथा राज्य में क्या सम्बन्ध है?
  75. प्रश्न- मार्क्स की राज्य सम्बन्धी नई धारणा राज्य तथा सामाजिक वर्ग के बार में समझाइये।
  76. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य के रूप में विखंडित, ऐतिहासिक, भौतिकवादी अवधारणा बताइये |
  77. प्रश्न- स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांत बताइये।
  78. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  79. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  81. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  82. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  83. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  84. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  85. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  86. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  87. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  88. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  89. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  92. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  93. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  95. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  96. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  97. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  98. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषतायें बताइये।
  99. प्रश्न- मैक्स वेबर के बौद्धिक पक्ष के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिये।
  100. प्रश्न- वेबर का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
  101. प्रश्न- वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया क्या है? सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रचारों का वर्णन भी कीजिए।
  102. प्रश्न- सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
  103. प्रश्न- नौकरशाही किसे कहते हैं? वेबर के नौकरशाही सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  104. प्रश्न- वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त क्या है?
  105. प्रश्न- नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
  106. प्रश्न- सत्ता क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- मैक्स वैबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित किजिये।
  108. प्रश्न- वेबर का पद्धतिशास्त्र तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय क्या हैं? स्पष्ट करो।
  109. प्रश्न- आदर्श प्ररूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- करिश्माई सत्ता के मुख्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  111. प्रश्न- 'प्रोटेस्टेण्ट आचार और पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी मैक्स वेबर के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- कार्य प्रणाली का योगदान या कार्य प्रणाली का अर्थ, परिभाषा बताइये।
  113. प्रश्न- मैक्स वेबर के 'आदर्श प्रारूप' की विवेचना कीजिए।
  114. प्रश्न- मैक्स वैबर का संक्षिप्त जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिये।
  115. प्रश्न- मैक्स वेबर का बौद्धिक दृष्टिकोण क्या है?
  116. प्रश्न- सामाजिक क्रिया को स्पष्ट कीजिये।
  117. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा दिये गये सामाजिक क्रिया के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- वैबर के अनुसार सामाजिक वर्ग और स्थिति क्या है? बताइये।
  119. प्रश्न- वेबर का सामाजिक संगठन का सिद्धान्त क्या है? बताइये।
  120. प्रश्न- वेबर का धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइये।
  121. प्रश्न- धर्म के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स तथा मैक्स वेबर के विचारों की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- वेबर ने शक्ति को किस प्रकार समझाया?
  123. प्रश्न- नौकरशाही के दोष समझाइए?
  124. प्रश्न- वेबर के पद्धतिशास्त्र में आदर्श प्रारूप की अवधारणा का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा प्रदत्त आदर्श प्रारूप की विशेषताएँ बताइये। .
  126. प्रश्न- वेबर की आदर्श प्रारूप की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
  127. प्रश्न- डिर्क केसलर की आदर्श प्रारूप हेतु क्या विचारधाराएँ हैं?
  128. प्रश्न- मैक्सवेबर के अनुसार दफ्तरी कार्य व्यवस्थाएँ किस तरह की होती हैं?
  129. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, कर्मचारी-तंत्र के कौन-कौन से कारण हैं? स्पष्ट करें।
  130. प्रश्न- 'मैक्स वेबर ने कर्मचारी तंत्र का मात्र औपचारिक रूप से ही अध्ययन किया है।' स्पष्ट करें।
  131. प्रश्न- रोबर्ट मार्टन ने कर्मचारी तंत्र के दुष्कार्य क्या बताये हैं?
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, 'कार्य ही जीवन तथा कुशलता ही धन है' किस तरह से?
  133. प्रश्न- “जो व्यक्ति व्यवसाय में कुशल है, धन और समाज दोनों ही पाते हैं।" मैक्स वेबर की विचारधारा पर स्पष्ट करें।
  134. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  136. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  137. प्रश्न- वेबर का पूँजीवाद समाज में नौकरशाही व्यवस्था पर लेख लिखिये।
  138. प्रश्न- प्रोटेस्टेन्टिजम और पूँजीवाद के बीच सम्बन्धों पर वेबर के विचारों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रतिपादित आदर्श प्ररूप की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  140. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  141. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  142. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
  143. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  144. प्रश्न- पैरेटो के “सामाजिक क्रिया सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए?
  145. प्रश्न- परेटो के अनुसार तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाओं की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  146. प्रश्न- परेटो ने अतर्कसंगत क्रियाओं को कैसे समझाया?
  147. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए एवं महत्व बताइये।
  148. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइये।
  149. प्रश्न- पैरेटो के भ्रान्त-तर्क के सिद्धांत की विवेचना कीजिए।
  150. प्रश्न- पैरेटो के 'अवशेष' के सिद्धांत का क्या महत्त्व है?
  151. प्रश्न- भ्रान्त तर्क की अवधारणा क्या है?
  152. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिये।
  153. प्रश्न- संक्षेप में परेटो का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  154. प्रश्न- पैरेटो की मानवीय क्रियाओं के वर्गीकरण की चर्चा कीजिये।
  155. प्रश्न- तार्किक क्रिया व अतार्किक क्रिया में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

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